पाकिस्तान (Pakistan) में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अब कौमार्य परीक्षण (Virginity Tests) से नहीं गुजरना होगा. लाहौर हाई कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में इस व्यवस्था को असंवैधानिक और अमानवीय करार देते हुए रोक लगा दी है. कोर्ट के इस फैसले को महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठनों की जीत के रूप में देखा जा रहा है, जो लंबे समय से इस व्यवस्था को खत्म किए जाने की मांग कर रहे थे. अब तक पाकिस्तान में बलात्कार की शिकार महिलाओं को बेहद शर्मनाक और अपमानजनक टेस्ट का सामना करना पड़ता था.
लाहौर हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस आयशा मलिक (Ayesha Malik) ने अपने फैसले में कहा, ‘इस प्रैक्टिस का कोई चिकित्सीय आधार नहीं है और ये पीड़िता की गरिमा के खिलाफ है. इस तरह की व्यवस्था जीवन के अधिकार के खिलाफ है, इसलिए इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए’. अब तक पाकिस्तान (Pakistan) में बलात्कार की शिकार महिला का टू-फिंगर वर्जिनिटी टेस्ट (Two Finger Virginity Test) किया जाता था, ताकि ये पता लगाया जा सके कि उसके साथ रेप हुआ भी है या नहीं. आमतौर पर यह टेस्ट दो उंगलियों से किया जाता है. इसलिए इसे टू-फिंगर टेस्ट कहा जाता है.
अदालत ने उन दो याचिकाओं के आधार पर ये फैसला सुनाया है. जिन्हें पिछले साल जून में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों, अधिवक्ताओं और नेशनल असेंबली के एक सदस्य द्वारा दायर किया गया था. याचिकाओं में कहा गया था कि टू-फिंगर टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और ये पीड़िता की गरिमा के खिलाफ है. इसलिए इस पर रोक लगाई जानी चाहिए. अपने फैसले में चीफ जस्टिस आयशा मलिक ने याचिकाओं में व्यक्त चिंताओं को सही मानते हुए सरकार से कहा है कि वर्जिनिटी टेस्ट बंद करने के संबंध में तत्काल आदेश जारी किए जाएं.
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि वर्जिनिटी टेस्ट की कोई वैज्ञानिक या मेडिकल जरूरत नहीं होती है, लेकिन यौन हिंसा के मामलों में मेडिकल प्रोटोकॉल के नाम पर इसे किया जाता रहा है. यह शर्मिंदा करने वाला काम है जिसे पीड़ित पर आरोप लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, बजाय आरोपी पर ध्यान देने के. बता दें कि केवल पाकिस्तान ही नहीं कुछ अन्य देशों में महिलाओं को इस तरह के टेस्ट से गुजरना पड़ता है. वहीं, पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी (Shireen Mazari) ने अदालत के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए चीफ जस्टिस मलिक का शुक्रिया अदा किया है